नज़रों का इक धोखा रखना, कितना मुश्किल होता है ||
आँखों को आईना करना , कितना मुश्किल होता है ||
मौत जिस्म से ज़्यादा मन की, दुःख देती है ऐ लोगों |
अक्सर यूँ बेबात ही मरना, कितना मुश्किल होता है ||
दर्दों-ग़म के इस मेले में, सबसे हम हंस-हंस के मिले |
यूँ भी ख़ुद को ज़िन्दा रखना, कितना मुश्किल होता है ||
फ़ूलों से हम जब गुज़रे, तो हमको ये मालूम हुआ |
काँटों की राहों पे चलना, कितना मुश्किल होता है ||
हर इक ठोकर ने हमको , ये पाठ पढ़ाया है यारों |
गिर, गिरके हर बार संभलना, कितना मुश्किल होता है ||
नज़रों से गिरने में कोई, हैरानी की बात नहीं |
पर नज़रों में किसी की उठना, कितना मुश्किल होता है ||
सामने दरिया, नदी, समन्दर, बहते हों कितने ‘पूनम’|
खुद को फिर भी प्यासा रखना, कितना मुश्किल होता है ||
..... पूनम माटिया 'पूनम'
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