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Saturday, December 6, 2014

समीक्षा पूनम माटिया द्वारा ............. कहकशां-रमेश सिद्धार्थ की दिलकश ग़ज़लें

कहकशां –
रमेश सिद्धार्थ की दिलकश ग़ज़लें
(वेदांत म्युज़िक क.)
इश्क़ जाने ख़ुदा कैसे, कब हो गया||
देखते- देखते ही ग़ज़ब  हो गया ||
पीर- ओ-murshid मुर्शिद जो ढूँढा किये उम्र भर|
इक झलक में ही हासिल वो सब हो गया ||
रोमांचित कर देने वाली आठ ग़ज़लों का नायब संग्रह है ‘कहकशां’ ग़ज़ल के शौक़ीनो के लिए –जिसमे रमेश सिद्धार्थ ने एक से बढकर एक मोती जड़ दिए हैं|  
इश्क़ में इंसान क्या क्या हासिल कर सकता है और किस कदर ख़ुदा की मेहरबानी उसपे अता होती है उसकी ताज़ा तरीन नुमाइंदगी देखने को मिलती हैं रमेश सिद्धार्थ के इन अशआर में|
इश्क का नूर ज्यों ही  उजागर हुआ|
ज़हन का हर ख़लल बेसबब हो गया ||
रूहानी ख़ुशी और सुकूं मिलता है जब रोहित चतुर्वेदी की दिलकश आवाज़ में एक के बाद एक खूबसूरत ग़ज़लें अपना रंग बिखेरती हैं|
तुम्हारे शाने से आती है ग़ैर की खुशबू |
मेरे यकीन को धोखा बताओगे कब तक ||

रिश्ते ,वफ़ा ,बेवफाई ,दूरियां ,यादें ,फुरक़त ..हर सिम्त घूम के आती है लेखक की सोच| .इसकी एक बानगी यूँ भी है-
ये जात –पात की दीवारें गर गिरानी हों| 
पढ़ो न पोथियाँ,पढ़ लो कबीर काफी है ||
गले मिलो तो सही, दिल पिघल ही जायेंगे |
कलह मिटाने को रंग और अबीर काफ़ी है ||
एकल और युगल गायिकी , दोनों ने ही नए आयाम दिए हैं ग़ज़लकार के अलफ़ाज़ को|.
ज़िन्दगी में गुज़रते हुए लम्हों और छूटते हुए रिश्तों के ज़ाविये से कई शे’र कहे गए हैं इन ग़ज़लों में जैसे ......
गुजरें लम्हों से वास्ता रखना ||
हमसे ज़्यादा न फ़ासला रखना ||
सूख जाए न प्यार का बिरवा ||
चंद पत्तों को तो हरा  रखना ||
रूमानी अहसास के कद्रदानो के लिए बार-बार सुनने लायक| दिली मुबारकबाद जनाब रमेश सिद्धार्थ को|.
ग़ज़लकार –रमेश सिद्धार्थ
संगीत –विपिन सुनेजा
गायक-गायिका-रोहित चतुर्वेदी ,भावना
मूल्य -120 रूपये
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समीक्षा : पूनम माटिया ‘पूनम’
(लेखिका ,कवियित्री ,संपादिका )

poonam.matia@gmail.com

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