तजर्बा कुछ हुआ ऐसा कि टूटा तड़पा हारा दिल
क़सम ले ली है अब हमने, नहीं देंगे दुबारा दिल
अजब व्यापार है दिल का, ग़ज़ब का खेल है ये भी
तुम्हारा दिल तुम्हारा दिल, हमारा दिल तुम्हारा दिल
गिले- शिकवे भुला दो सब, कभी एतबार भी कर लो
न कोई और है दिल में, तुम्हीं पर हमने वारा दिल
समंदर-सी है तन्हाई, पहाड़ों-सा है वीराना
भटकता फिरता सहरा में, बिला आशिक़ कुंवारा दिल
है मुमकिन मिल न पाएं हम, है मुमकिन भूल जाओ तुम
मगर ये दिल तुम्हारा था, रहेगा ये तुम्हारा दिल
पूनम माटिया
जी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना शुक्रवार ६ सितंबर २०१९ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
बहुत सुंदर ग़ज़ल।
ReplyDeleteतजर्बा कुछ हुआ ऐसा कि टूटा तड़पा हारा दिल
ReplyDeleteक़सम ले ली है अब हमने, नहीं देंगे दुबारा दिल
बहुत खूब पूनम जी । यही है दिल की दास्तान , जिससे शिकायत है उससे दूर भी कब जाना चाहता है। सुंदर भावपूर्ण रचना के लिए हार्दिक शुभकामनायें ।
बहुत सुंदर ग़ज़ल ।
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ReplyDeleteहै मुमकिन मिल न पाएं हम, है मुमकिन भूल जाओ तुम
मगर ये दिल तुम्हारा था, रहेगा ये तुम्हारा दिल
,वाह लाज़वाब।