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Monday, November 18, 2019

ग़ज़ल -कुछ हट के




इक रोज़ मेरे घर में ख़ुशियों ने दी थी आहट
आमद
हुई थी उनकी, पलकें बिछा दीं झटपट


बच्चे हमारे देखो क्या-क्या नहीं हैं करते
जिस
मोड़ पर खड़े हों लगते वहीं पे जमघट


दरवाज़े बन्द करके ये कौन खा रहा है?
देखो
तो क्या है आहट, क्या हो रही है खटखट?


शौहर तो एक ही है, और प्यार भी वो करता
पर
रोज़ ही लगी है चारों पहर की खटपट


वादे किए थे लाखों  मुख-पुस्तिका पे उसने
बीवी
को देखते ही उतरा बुख़ार झटपट


दिल्ली का हाल देखो, अब गाँव से भी बदतर
पानी
की वैन से तो, घट-घट बना है
पनघट


पूनम माटिया

1 comment:

  1. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज सोमवार 18 नवम्बर 2019 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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