कवियों के भाव मंच पर और पुस्तक में ।कीर्ति काले जी का कहना मंच पर आँखे देखती कान सुनती है ,उसमे कवि की प्रस्तुति काव्य को सुंदरता प्रदान करती है लेकिन पढने में पाठक कवि के अंतर्मन को समझता है। रामदास मिश्र ने मंच पर प्रस्तुति को ज्यादा प्राथमिकता दे रहे हैं सभी कवियों का विचार पाठक के अंतर्मन तक पहुंच रहा है।
धन्यवाद .आपने ब्लॉग की इस पोस्ट पर आकर पढ़ा और अपनी सकारातमक प्रतिक्रिया देकर मेरा उत्साहवर्धन किया| कथानक का यह अंक डॉ अनुज ने बड़ी मेहनत से तैयार किया है .पठनीय व संग्रहनीय है | इसमें बूँद भर योगदान मैं दे सकी बस| आप अपना नाम भी बताते तो और अच्छा लगता
धन्यवाद सुधि साहित्यिक मित्र .......आपने ब्लॉग की इस पोस्ट पर आकर पढ़ा और अपनी सकारातमक प्रतिक्रिया देकर मेरा उत्साहवर्धन किया| कथानक का यह अंक डॉ अनुज ने बड़ी मेहनत से तैयार किया है .पठनीय व संग्रहनीय है | इसमें बूँद भर योगदान मैं दे सकी बस| आप अपना नाम भी बताते तो और अच्छा लगता
मंचीय कविता और मुख्य धारा की कविता पर आज की परिस्थितियों के अनुरूप एक सुन्दर और सटीक विवेचना ...अच्छा विश्लेषण है...जहा तक मैं समझता हूँ कविता कविता ही होती हैं चाहे वो मुख्य धारा कि हो या मंच की ....क्योकि जो दीखता है वही लोगो के पास पहुँचता है ...और उसी से वो अपनी राय रखते है...आज मंच की कविता ही लोगो को मंच या TV पर दिखाई देती है..इसलिए श्रोताओ के लिए वही मुख्य धारा है... अब समय आ गया है जब इन दोनों के बीच की लकीर पर लगातार चर्चा हो और इस लकीर को मिटा दिया जाए...
सटीक कथन नरेश .........जो कविता जन-मानस के पास पहुँचती है वही उनके लिए कविता है| पाठ्यक्रम की या मुख्य धारा की कविता को एक अलग परकोटे में रख देने से समाज का अहित ही है ....... दोनों के बीच की रेखा को मिटाकर एकीकार होना आवश्यक है और ऐसा है भी नहीं कि मंच से पहुँचने वाली कविता में तत्त्व है ही नहीं ........वो बात अलग है अपवाद तो हर जगह है
कवियों के भाव मंच पर और पुस्तक में ।कीर्ति काले जी का कहना मंच पर आँखे देखती कान सुनती है ,उसमे कवि की प्रस्तुति काव्य को सुंदरता प्रदान करती है लेकिन पढने में पाठक कवि के अंतर्मन को समझता है। रामदास मिश्र ने मंच पर प्रस्तुति को ज्यादा प्राथमिकता दे रहे हैं
ReplyDeleteसभी कवियों का विचार पाठक के अंतर्मन तक पहुंच रहा है।
धन्यवाद .आपने ब्लॉग की इस पोस्ट पर आकर पढ़ा और अपनी सकारातमक प्रतिक्रिया देकर मेरा उत्साहवर्धन किया|
Deleteकथानक का यह अंक डॉ अनुज ने बड़ी मेहनत से तैयार किया है .पठनीय व संग्रहनीय है |
इसमें बूँद भर योगदान मैं दे सकी बस|
आप अपना नाम भी बताते तो और अच्छा लगता
वाह वाह वाह वाह
ReplyDeleteआदरणीया पूनम जी आपने वाकई शानदार उत्कृष्ट आलेख लिखा
आपकी लेखन क्रिया प्रशंसनीय है मेरी ओर से आपको हार्दिक शुभकामनाएं एवं बधाई 💐🌹😇🙏
धन्यवाद सुधि साहित्यिक मित्र .......आपने ब्लॉग की इस पोस्ट पर आकर पढ़ा और अपनी सकारातमक प्रतिक्रिया देकर मेरा उत्साहवर्धन किया|
Deleteकथानक का यह अंक डॉ अनुज ने बड़ी मेहनत से तैयार किया है .पठनीय व संग्रहनीय है |
इसमें बूँद भर योगदान मैं दे सकी बस|
आप अपना नाम भी बताते तो और अच्छा लगता
मंचीय कविता और मुख्य धारा की कविता पर आज की परिस्थितियों के अनुरूप एक सुन्दर और सटीक विवेचना ...अच्छा विश्लेषण है...जहा तक मैं समझता हूँ कविता कविता ही होती हैं चाहे वो मुख्य धारा कि हो या मंच की ....क्योकि जो दीखता है वही लोगो के पास पहुँचता है ...और उसी से वो अपनी राय रखते है...आज मंच की कविता ही लोगो को मंच या TV पर दिखाई देती है..इसलिए श्रोताओ के लिए वही मुख्य धारा है... अब समय आ गया है जब इन दोनों के बीच की लकीर पर लगातार चर्चा हो और इस लकीर को मिटा दिया जाए...
ReplyDeleteसटीक कथन नरेश .........जो कविता जन-मानस के पास पहुँचती है वही उनके लिए कविता है| पाठ्यक्रम की या मुख्य धारा की कविता को एक अलग परकोटे में रख देने से समाज का अहित ही है ....... दोनों के बीच की रेखा को मिटाकर एकीकार होना आवश्यक है और ऐसा है भी नहीं कि मंच से पहुँचने वाली कविता में तत्त्व है ही नहीं ........वो बात अलग है अपवाद तो हर जगह है
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