मायाजाल............
जी को जंजाल कितने हैं
मायाजाल इतने हैं
कविता भी
डर के मूह छिपाती है
ग़ज़ल की बह्र भी
कहाँ हाथ आती है
गीत मौन हो
गाये जाने को तरसते हैं
नज़्म छेड़े कोई कलम
अल्फाज़ लिखे जाने को तरसते हैं
हम रोजमर्रा की कशमकश से
निकल जाने को तरसते हैं
बीवी -शौहर किसकी कहें
एक-दूजे से बात करने को
तरसते हैं .....पूनम
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