चाहती तो कहना बहुत कुछ थी,मगर शिकन देख
जाने क्यों थाम लिया खुद को, सी लिए लब सुना था कि बातों में बात बड जाती है
यही एक बात लबों पे ताला लगा जाती है
काश कि कोई चाबी उनके दिल की मिले
तो फिर क्यूँ बड़े यूँ शिकवे-गिले
आसां हो जाये दिल तक पहुंचना
न चुप रहना, न तिल का ताड़ बनना
ग़लतफ़हमी की बेल बेलगाम होती है
अक्सर इसके फलों में कड़वाहट बसी होती है
कहते हैं लोग - कह दो दिल खोल कर
क्यूँ बाद में पछताना बातों को नाप-तोलकर
थी आँखों में नमी और दिल में तूफ़ान-ऐ-ज़ज्बात
पर रोका न खुद को ,बस कह दी अपने दिल की बात
कहते ही सिंधु समान अश्रु-सगर उमड़ पड़ा
दिल था जो भारी,हल्का हो बादल-सम उड़ चला
मुस्कुरा के देखा उन्होंने ,खोले अपने भी दिल के पाट
मेरे दिल में भी खिल उठे आज फिर सूर्ख गुलाब ........................पूनम.
good
ReplyDeleteshukriya Yashwant Digarse
Deleteमुस्कुरा के देखा उन्होंने ,खोले अपने भी दिल के पाट
ReplyDeleteमेरे दिल में भी खिल उठे आज फिर सूर्ख गुलाब ..... बहुत खूब पूनम जी साधुवाद...
डॉ ओ पी वर्मा जी बहुत आभार
DeleteDev ........thnx
ReplyDeletesundar...:)
ReplyDeletekavita ji shukriya ....mujhe khushi hai ki aapne yahan aakar mujhe protsahit kiya ....I cant thank u enough :)))))))
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ReplyDeletekitni gahrai se likha hai apne. padhte samay doobta chala gaya per gahrai maap na saka. bahut bahut sunder...........
ReplyDeleteshukriya .......Atul :) aapki pratikriya bahut maayne rakhti hai :)
Deletevery good poonam ji
ReplyDeleteमैं जाकर ख्वाब की दुनिया में जितना जगमगाया हूँ
खुली है आंख तो उतना ही खुद पे सकपकाया हूँ
मुझे बाहर के रस्तों पर नहीं कांटों का डर कोई
वो सब अंदर के हैं बीहड़ मैं जिनपे डगमगाया हूँ
हां अब भी शाम को यादों के कुछ जुगनू चमकते हैं
मैं बेशक सारे खत लहरों के जिम्मे छोड़ आया हूँ
तुम्हारे ख्वाब की ताबीर से वाकिफ हैं सारे ही
मैं अपने ख्वाब की सूरत का इक धुंधला सा साया हूँ
मुझे तुमसे नहीं शिकवा मगर "मोहन" से तो है
मैं बन कर आंख तेरी अब तलक क्यों डबडबाया हूँ
मोहन जी शुक्रिया .....:)
ReplyDeleteमुझे बाहर के रस्तों पर नहीं कांटों का डर कोई
वो सब अंदर के हैं बीहड़ मैं जिनपे डगमगाया हूँ// सटीक और खूब कहा ......येही भीतर का डर हमें खुलने नहीं देता