सधवा से विधवा हुई
क्या मेरा कसूर था ?
उससे भी पहले पैदा हुई
क्या मेरा कसूर था ?
एक घर से दूजे घर भेजी गयी
क्या मेरा कसूर था ?
जनी बिटिया मैंने
क्या मेरा कसूर था ?
दूसरी औरत के लिए त्यागी गई
क्या मेरा कसूर था ?
शराबी पति द्वारा पीटी गयी
क्या मेरा कसूर था ?
गर नहीं तो
क्यूँ डायन करार दी गयी
क्यूँ जीवित पत्थर में चिन दी गयी
क्यूँ सती कह जिन्दा जलाई गयी
चाहा नहीं देवी बन पूजी जाऊं
चाहा ये भी नहीं पाँव की जूती कहाऊं
चाह सिर्फ एक
इंसा हूँ , इंसा तो मानी जाऊं
इंसा हूँ, इंसा तो मानी जाऊं............poonam ......(इ पत्रिका 'नव्या' में पूर्व प्रकाशित )
इंसा हूँ, इंसा तो मानी जाऊं. अच्छी प्रेरणा दायक आज के समाज के सामने नारी होने का दंश आपने सुंन्दर ढग से कविता की पंत्त्तियो मे उूकेरा है सुन्दर रचना,
ReplyDeleteराम लखन जी ..... इस दंश से मुक्ति ही नारी के स-शक्तिकरण का उद्गम बनेगी ......इसी आशा के साथ .....ये रचना लिखी .....आपके शब्दों के लिए आभार
ReplyDeletebehtarin prastuti
ReplyDeleteAziz saheb ......shukriya
Deleteसुन्दर भावनात्मक प्रस्तुति |
ReplyDeleteमिनाक्षी बहुत बहुत शुक्रिया जो आपने ब्लॉग में आकर पढ़ा और अपने शब्दों से मेरा उत्साहवर्धन किया
Deleteबेहद उम्दा कृति ………हार्दिक बधाई
ReplyDeleteशुक्रिया वंदना जी
Deletekalpna matra karne se hi rooh kanp uthi. jin per beetati hogi unki kya dasha hoti hogi. samaj ke un sabhi budhjeevi varg ko ek karara thappad hai jinhone aisi sthiti utpann ki hogi aur kar rahen hain ...........
ReplyDeleteअतुल सच कहा तुमने कहने को तरक्की बहुत हुई है परंतु वह सिर्फ कुछ प्रतिशत तक ही सिमटी हुई है ...........अधिकांश महिला वर्ग तो अभी इन कुरीतियों और कु व्यवहार से ग्रसित है .........रचना सार्थक करने के लिए आभार
Deleteकल 14/10/2012 को आपकी यह खूबसूरत पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
ReplyDeleteधन्यवाद!
यशवंत जी .........शुक्रिया मेरे शब्दों को पाठकों तक विस्तार देने के लिए ....
Deleteapki kavita ne mahilaon ki vedna ko is tarah se chitrit kiya hai ki, mera hriday vedna se dravit ho utha..... hey bhagwaan hamari pojya nariyon ko is purush pradhan samaj dwara iski anubhooti kab ki jayegi.........sampoorn kavita yah ehsas dilane me saksham hai ki purush swarthi hriday viheen aur nirankushta ki prakastha ko langh chuka hai ...
ReplyDelete( this comment is by my Fathar Sree Munendra kumar pathak Advocate High court )
Atul..........I m honoured and feel blessed to receive such a thoughtful and emotional response frm ur Respected father shree Munendra ji ......
ReplyDeleteaur han mahilaaon kii stithi aisi hi hai adhikansh jagah .......jo har par apne hone ko curse karti hain ki aakhir kyun is purush -pradhaan smaj mei iishwar ne unhe ''aurat'' banaa kar bheja .....udgaar mere hain .......par bhav shayd har mahila ke .....
thnx again for making this composition ...MEANINGFUL
चाहा नहीं देवी बन पूजी जाऊं
ReplyDeleteसधवा से विधवा हुई
क्या मेरा कसूर था सुंदर प्रस्तुति... परिवर्तन आ रहा है... आने वाला समय अच्छा है... http://www.kuldeepkikavita.blogspot.com
कुलदीप मुझे ख़ुशी है कि आप आशावान है .....आगे समय बेहतर हो सभी यही चाहते हैं ...........आभार आपने मेरी रचना को अपना समय दिया
Deleteसभी नारियों के मन का चित्रण...सुंदर रचना!!
ReplyDeleteऋता शेखर जी .....शुक्रिया ....आपने मेरी रचना को अपना समय दिया..
Deleteबहुत ही अच्छा लिखा आपने .बहुत ही भावनामई रचना.बहुत बधाई आपको
ReplyDeleteमदन मोहन जी .......शुक्रिया प्रोत्साहन से युक्त प्रतिक्रिया का
Deleteइंसा हूँ, इंसा तो मानी जाऊं..... औरत की आत्मा के दर्द को पिरो दिया आपने !!!
ReplyDeleteशुक्रिया ....आपने पढ़ा और सार्थक किया मेरी रचना को
Deleteक्या कहीं पूनम जी....निःशब्द हूँ....
ReplyDeleteकाश कि औरत को एक इंसान समझा जाय.....जाने कब आएगा वो दिन.
अनु
अनु जी .....उम्मीद पे दुनिया कायम है
Deleteबस सब प्रयासरत रहे :) धन्यवाद
अनु जी शुक्रिया .......रचना को पढने और तबज्जो देने के लिए
ReplyDeleteऔर हाँ स्तिथि है ही चिंताजनक .....:(