मित्रों यह रचना मैंने ''अपना घर ,भरतपुर '' के प्रयासों के प्रति समर्पित की .....
मूर्ती पूजते हैं हम
मूर्तिकार को भूल जाते हैं
मूर्तिकार को भूल जाते हैं
कहने को
भगवान सब में है
कहते हैं हम
पर उसे इंसानों में
देखना भूल जाते हैं
कहते हैं हम
पर उसे इंसानों में
देखना भूल जाते हैं
जो खाता
नहीं
उसे छप्पन भोग लगाते हैं
दूजे का खाली पेट
नज़र अंदाज़ कर जाते हैं
उसे छप्पन भोग लगाते हैं
दूजे का खाली पेट
नज़र अंदाज़ कर जाते हैं
मंदिर
मस्जिद को सजाते हैं
नक्काशी करवाते हैं
एक एक नक्श
उसकी बारिकियाँ
सब पर निगाह रखते हैं
जीवित इंसान के
शरीर पर खरोंचें ,ज़ख्म हैं कितने
उन पर एक प्यार भरी
निगाह डालना भूल जाते हैं
नक्काशी करवाते हैं
एक एक नक्श
उसकी बारिकियाँ
सब पर निगाह रखते हैं
जीवित इंसान के
शरीर पर खरोंचें ,ज़ख्म हैं कितने
उन पर एक प्यार भरी
निगाह डालना भूल जाते हैं
खुदा
बसता खुदा के बन्दों में
बस यही याद रखना है
एक स्नेह स्निग्ध साथ
एक मदद भरा हाथ
बढ़ाना है ज़रुरी
गिरे हुए को उठाना
ज़ख्मो को सहलाना
कूड़ा करकट ,कीड़ा मकोड़ा नहीं
इंसान को इंसान समझना
चलो एक बार यही
करके दिखाते हैं
चलो एक बार यही
बस यही याद रखना है
एक स्नेह स्निग्ध साथ
एक मदद भरा हाथ
बढ़ाना है ज़रुरी
गिरे हुए को उठाना
ज़ख्मो को सहलाना
कूड़ा करकट ,कीड़ा मकोड़ा नहीं
इंसान को इंसान समझना
चलो एक बार यही
करके दिखाते हैं
चलो एक बार यही
करके दिखाते हैं.........पूनम (अप्रकाशित)
''अपना घर ''एक सेवा सदन है जहाँ असहाय ,पीड़ित ,वेदनादायक स्तिथि में पाए जाने वाले लोग, जिनका कोई नहीं होता ,उन्हें इलाज़ और रहन सहन की सुविधा मिलती है .........इसका प्रमुख कार्य क्षेत्र ,भरत पुर राजस्थान में है .....और इसके अलावा कोटा ,अलवर में भी है ......आज (28/10/12) दिल्ली में भी इसका लोकार्पण हुआ ........
खुदा बसता खुदा के बन्दों में
ReplyDeleteबस यही याद रखना है
एक स्नेह स्निग्ध साथ
एक मदद भरा हाथ
बढ़ाना है ज़रुरी
गिरे हुए को उठाना
ज़ख्मो को सहलाना
कूड़ा करकट ,कीड़ा मकोड़ा नहीं
इंसान को इंसान समझना....बहुत अच्छा सन्देश देती रचना...की नर ही नारायण हैं.....लाचार , बेसहारा को सहारा दे दिया जाए और भूखो का पेट भर दिया जाए...तो इस से बड़ी कोई पूजा नहीं हो सकती.......एक सार्थक रचना....पूनम .......
shukriya Naresh
Deletesoo nice..
ReplyDeletethnx a lot Cityanalyst
DeleteI think........ kisi ki khusiyon ko har koi bant leta hai lekin kisi greeb ke dukhon ko bantna asaan nahi hota. aur yadi hum kisi ki madad karte bhi hain to ye insaniyat hogi na ki us per kisi prakar ka ehsaan........apke dwara ek sarthak prayas.
ReplyDeleteअतुल ...सही कहा ......अच्छे समय /सुख में साथ हज़ार .......पर दुःख की घडी में अकेले ,परिस्थिति लगे पहाड़ ......
Deleteउस समय ही हमें सुखनवर की दरकार ....पूनम ........आभार सराहना के लिए
दीदी.... ऊऊउफ़्फ़्फ़्फ़्फ़्फ़्फ़्फ़.... क्या झकझोर के रख देने वाला शब्द चित्र उभारा है आपने... सच्चाई के करीब क्या.. खालिस सच.... जिस बेहतरीन ढंग से आपने तुलनात्मक तारतम्य संजोया है अपनी रचना में.. अभिभूत हूँ.. उसे महसूस करके.. नमन आपकी सोच और लेखनी को................
ReplyDeleteRahul.....जिस चित्र (एक ज़ख़्मी, कीड़े पड़े हुए पैरों के ज़ख्म में ,गंद में लतपत).........को देख मैंने ये रचना लिखी .......उसे देख स्वत: ही ये विचार ,ये शब्द ज़हन में आते गए .....बैचैनी के उस आलम में ......अगर मेरा लिखा कुछ न्याय कर पाये .......उस नारकीय स्तिथि में पाए जाने वाले ....असहाय लोगों के साथ .........और सेवा कर्मियों के प्रयास उजागर हो पाए ..........तो मेरी रचना सार्थक हो जाती है ............फिर उसकी शिल्प कैसी है ........मुझे याद ही नहीं रहता ...................तुम्हारा बहुत बहुत आभार जो तुमने मुझे अहसास दिलाया कि मैंने एक विचारणीय बिम्ब प्रस्तुत किया........
Deletebahut hee marmik panktiya likhi aapne aabhaar aapka punam jii
ReplyDeleteशुक्रिया अशोक जी ..आपने ही प्रोत्साहित किया अपने सु कार्यों से
Deleteshukriya Yashwant ji .....
ReplyDeleteयही असली धर्म है
ReplyDeleteसही कहा संगीता जी .......धन्यवाद ....आप का सदैव स्वागत है
DeleteJaha jaiyega hame paiyega...apka blog follow kar liya hain poonam ji
ReplyDeleteखरामा खरामा ......खुशामदीद .....:) अपर्णा ...शुक्रिया
Deletebahut behtareen aur bahut sach...
ReplyDeleteMukesh ji shukriya
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