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Sunday, October 28, 2012

फिर से ...



स्वप्न सजाये हैं इन आँखों ने आज फिर से
उसकी सूरत उभर आई है ज़हन में आज फिर से

इक अहसास .इक सिसकती याद ने ली अंगडाई है फिर से
उसके लबों की मासूमियत ने धडकन बढ़ाई है फिर से

प्यार की बूंदे आज मेघों ने टपकाई हैं फिर से
दामन में मेरे सौंधी सी महक जैसे भर आई है फिर से

बाजुओं में आज उसके समा जाने की चाह उठ आई है फिर से
आरजू-ए-मिलन ए-खुदा गहराई है आज फिर से

तेरी बंदगी में सर झुका के बैठी हूँ
अपनी रज़ा से नवाज़ दे आज फिर से.........पूनम (स्वप्न शृंगार में संकलित )

9 comments:

  1. शुभ प्रभात
    सुरम्य रचना

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    1. Yashoda जी शुक्रिया .शुभम

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  2. बेहतरीन कविता



    सादर

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    1. यशवंत जी धन्यवाद ..स्नेह बनाये रखें

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  3. yes really its one of the best.........keep it on ..all the bast.

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  4. Itnee prabal ichchhaa thee ki voh sapanon mein apne aakarshak roop me saakaar hui

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  5. Deven.........ji sach kaha ichha shakti badi cheez hoti hai .....dhnywad

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