स्वप्न सजाये हैं इन आँखों ने आज फिर से
उसकी सूरत उभर आई है ज़हन में आज फिर से
इक अहसास .इक सिसकती याद ने ली अंगडाई है फिर से
उसके लबों की मासूमियत ने धडकन बढ़ाई है फिर से
प्यार की बूंदे आज मेघों ने टपकाई हैं फिर से
दामन में मेरे सौंधी सी महक जैसे भर आई है फिर से
बाजुओं में आज उसके समा जाने की चाह उठ आई है फिर से
आरजू-ए-मिलन ए-खुदा गहराई है आज फिर से
तेरी बंदगी में सर झुका के बैठी हूँ
अपनी रज़ा से नवाज़ दे आज फिर से.........पूनम (स्वप्न शृंगार में संकलित )
शुभ प्रभात
ReplyDeleteसुरम्य रचना
Yashoda जी शुक्रिया .शुभम
Deleteबेहतरीन कविता
ReplyDeleteसादर
यशवंत जी धन्यवाद ..स्नेह बनाये रखें
Deleteyes really its one of the best.........keep it on ..all the bast.
ReplyDeletethnx Atul.....its my one of favourites ,too
DeleteItnee prabal ichchhaa thee ki voh sapanon mein apne aakarshak roop me saakaar hui
ReplyDeleteDeven.........ji sach kaha ichha shakti badi cheez hoti hai .....dhnywad
ReplyDeleteBahut khoob
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