भोर की भई है बेला
नहीं तिमिर का कहीं चिन्ह
सूर्य का साम्राज्य चहू –ओर
नदिया का पावन तीर
दीया-बाती,
मोहक महक अगरबत्ती की
पावन-पर्व , श्रद्धा-सुमन
कर–जोड़े, पुलकित मन
सज-धज कर करें
अर्पित हम पुष्प और नीर
छटा यह न्यारी
निहारे बच्चे ,पुरुष और नारी .........पूनम (स्वप्न शृंगार)
सुंदर प्रस्तुति
ReplyDeleteshukriya Rakesh ji
Deleteसुन्दर रचना..
ReplyDeleteअनु