जदीद ग़ज़ल
अजी छोड़िए भी अब तो, हमारे कहाँ के ठाठ
बड़ी कोठियाँ हैं जिनकी, उन्हीं के निराले ठाठ
चलाते हैं हुक़्म हम पे, ये कुर्सी पे हो सवार
है कुर्सी में जान इनकी, हैं कुर्सी के सारे ठाठ
मिले माँ की गोद तुमको, तो राजा से कम कहाँ
ज़रा सोचना कभी तो , कहाँ घर के जैसे ठाठ
जहाँ चाहे खेलते थे, जिधर चाहे जाते लेट
वो बचपन के शाही क़िस्से, वो बचपन के जैसे ठाठ
किया आपका बसेरा दिलो-ज़ेहन
में जनाब
कहाँ पायेंगे अमीर , जहां भर में ऐसे ठाठ
............. पूनम माटिया
नोट
बह्र-ए-मज़ारेअ मुसम्मन मुज़ाहिफ़ मक़फ़ूक़ मक़सूर
अरकान-मफ़ाईलु फ़ाइलातु मफ़ाईलु फ़ाइलान
औज़ान- 1221 2121 1221 2 121
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वाह.....शानदार ग़ज़ल...बहुत बढ़िया...
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