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Monday, March 21, 2022

कविता का सृजन जैसे शिशु का जन्म -पूनम मटिया



जो भीतर कुलबुलाती है 
हृदय की वेदना ही है| 
बहुत बेचैन करती है,
प्रसव की राह तकती है| 



कला कला को जन्मती, कला कला का सार |
कला-रहित मानव, अहो! जन्म हुआ बेकार ||


........... पूनम माटिया 

 

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