...
बरखा रानी का जन्म दाता ....
अपने कोष में समेटे है धरती का अमृत
वो जो लेता है स्वरुप हमारी अपेक्षाओं के अनुरूप
वो रखता है क्षमता सूर्य को ढापने की
वो जो फैलाता है माँ सम आँचल तेज धुप में
वही जो दीखता है क्षितिज के छोर तक
मुलायम है,सफ़ेद है कभी कोमल रूई सा
सख्त लगता है कभी स्याह कोयले सा
वो जिसे देख नाचे जंगल का मोर
वो जिसे देख खिल उठे मन का भी मोर
वो बदलता है नित नए रूप
कभी नयी वधु सा उदीप्त ,तेजोमय
कभी उदास ,मुरझाई विरह में प्रेमिका
वो जो चंचलता में नहीं कम किसी हिरनी से
वो जिसकी चपलता का चर्चा नहीं कम किसी तरुणी से
वो जो अल्हड सा घुमे चिंता विहीन नवयोवना सा
कभी हाथ में आए ,कभी फिसल जाए
कभी क़दमों में ज़न्नत सजा जाए
वो निराकार ,कभी साकार मेरे सपनो का बादल
अपने कोष में समेटे है पृथ्वी का निर्मल जल ........पूनम (N)
बरखा रानी का जन्म दाता ....
अपने कोष में समेटे है धरती का अमृत
वो जो लेता है स्वरुप हमारी अपेक्षाओं के अनुरूप
वो रखता है क्षमता सूर्य को ढापने की
वो जो फैलाता है माँ सम आँचल तेज धुप में
वही जो दीखता है क्षितिज के छोर तक
मुलायम है,सफ़ेद है कभी कोमल रूई सा
सख्त लगता है कभी स्याह कोयले सा
वो जिसे देख नाचे जंगल का मोर
वो जिसे देख खिल उठे मन का भी मोर
वो बदलता है नित नए रूप
कभी नयी वधु सा उदीप्त ,तेजोमय
कभी उदास ,मुरझाई विरह में प्रेमिका
वो जो चंचलता में नहीं कम किसी हिरनी से
वो जिसकी चपलता का चर्चा नहीं कम किसी तरुणी से
वो जो अल्हड सा घुमे चिंता विहीन नवयोवना सा
कभी हाथ में आए ,कभी फिसल जाए
कभी क़दमों में ज़न्नत सजा जाए
वो निराकार ,कभी साकार मेरे सपनो का बादल
अपने कोष में समेटे है पृथ्वी का निर्मल जल ........पूनम (N)
कुछ बदला बदला सा था मंजर.. आसमानों का.. कुछ विस्मित सा हुआ मैं.. फिर याद आया... एक नायाब कृति से रूबरू होकर देखने का था ये असर... बहुत ही सुन्दर रचना.. एक अलग ही अंदाज़ में घटाओं को अपने में समेटे हुए... बहुत ही अनोखी..
ReplyDeleteकुछ बदला बदला सा था मंजर.. आसमानों का..
Deleteकुछ विस्मित सा हुआ मैं.. फिर याद आया...
एक नायाब कृति से रूबरू होकर देखने का था ये असर// वाह राहुल ..बादल तो होते ही ऐसे हैं जिनमे सब अपनी इच्छा-आकांक्षाओं के अनुरूप चित्र देखते हैं ......:)